Jac Board Class 10 History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Question & Answer
कक्षा 10 | इतिहास | अध्याय-1 |
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यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय |
संक्षेप में लिखें
1. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखे :-
(क) ज्युसेपे मेत्सिनी
(ख) काउंट कैमिलो दे कावूर
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध
(घ) फ्रैंकफर्ट संसद
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षो में महिलाओं की भूमिका
उत्तर : (क) ज्युसेपे मेत्सिनी : - ज्युसेपे मेत्सिनी इटली का महान क्रांतिकारी था , उसका जन्म 1807 में जिनेवा में हुआ था और वह कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य भी था 24 साल की अवस्था में लिगुरिया मैं क्रांति के लिए उसे बहिष्कृत कर दिया गया तत्पश्चात उसने दो और भूमिगत संगठनों की स्थापना की पहला मार्सेई में “यंग इटली” "और दूसरा बर्न में “यंग यूरोप" जिसके सदस्य समान विचारों को रखने वाले युवा थे। मेत्सिनी का विश्वास था कि ईश्वर की मर्जी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी वह इटली के प्रदेशों को एकत्रित कर गणतंत्र की स्थापना करना चाहता था। वह राजतंत्र का घोर विरोध करता था, इसलिए मेटरनिख ने उसे "हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन बताया।”
(ख) काउंट कैमिलो दे कावूर : - काउंट कैमिलो दे कावूर इटली के सार्डिनिया पीडमॉण्ट का प्रमुख मंत्री था उसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया। वह ना तो क्रांतिकारी था ना ही जनतंत्र में विश्वास रखता था वह इतालवी की अपेक्षा फ्रेंच भाषा को अधिक बेहतर ढंग से बोलता था। फ्रांस से उसके गहरे कूटनीतिक संबंध थे जिनकी सहायता से 1859 में उसने ऑस्ट्रिया को पराजित किया था इस प्रकार काबुर के प्रयासों के परिणाम स्वरुप 1861 में इटली का एकीकरण हुआ और सार्डिनीया के शासक विक्टर एमैनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का शासक घोषित किया गया।
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध :- 15 वीं सदी से यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। यूरोप में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनानियों का आजादी के लिए संघर्ष 1821 से आरंभ हो गया यूनान में राष्ट्रीय वादियों को निर्वासन में रह रहे यूनानियों के साथ पश्चिमी यूरोप के अन्य लोगों का समर्थन मिला, जो प्राचीन यूनानी संस्कृति के प्रति सहानुभूति रखते थे। कवियों और कलाकारों ने यूनान को0 यूरोपीय सभ्यता का पालना बताकर प्रशंसा की और मुस्लिम साम्राज्य के विरुद्ध यूनान के संघर्ष के लिए जनमत जुटाया । अंग्रेज कवि लॉर्ड वायरन ने धन इकट्ठा किया और बाद में युद्ध में लड़ने गए जहां 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गई। अंततः 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी।
(घ) फ्रैंकफर्ट संसद :-
- यूरोप के राष्ट्रों में स्वतंत्रता हेतु 19वीं सदी के मध्य में संघर्ष तेजी से शुरू हो गया इसका परिणाम यह हुआ कि जर्मनी में फ्रैंकफर्ट शहर में बड़ी संख्या में मिलकर एक सर्व जर्मन नेशनल असेंबली के पक्ष में मतदान का फैसला किया।
- 18 मई 1848 को 831 निर्वाचित प्रतिनिधियों ने एक सजे-धजे जुलूस में जाकर फ्रैंकफर्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया यह संसद सेंट पॉल चर्च में आयोजित हुई।
- एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया इस राज्य की अध्यक्षता एक ऐसे राज्य को सौंपी गई जिसे संसद के अधीन रहना था।
- प्रशा के राजा फ्रेडरिक विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनाने की पेशकश की तो उसने अस्वीकार कर दिया और उन राजाओं का समर्थन किया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे।
- संसद में मध्यवर्ग का प्रभाव बढ़ता ही चला गया उन्होंने मजदूरों और कारीगरों की मांग का विरोध किया, जिससे वे समर्थन खो बैठे। अंततः सैनिकों को बुलाकर असेंबली भंग कर दी गई।
- सर्वप्रथम पित्तृभूमि और नागरिक जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया।
- एक नया फ्रांसीसी झंडा तिरंगा चुना गया जिसने पहले के राज्य ध्वज की जगह ले ली।
- इस्टेट जनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा जिसका नाम बदलकर नेशनल असेंबली कर दिया गया।
- राष्ट्र के नाम पर नई स्तुतियां रची गई, शपथे ली गई शहीदों का गुणगान हुआ।
- एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई जिसमें सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाएं।
- आंतरिक आयात निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एक समान व्यवस्था लागू की गई।
- क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित किया गया और पेरिस में बोली जाने वाली फ्रेंच को राष्ट्रीय भाषा के रूप में चुना गया।
- राष्ट्रवादी भावनाएं मध्यवर्गीय जर्मन लोगों में काफी व्याप्त थी और उन्होंने 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र- राज्य बनाने का प्रयास किया था।
- लेकिन राष्ट्र निर्माण की यह उदारवादी पहल को राजशाही और फौज की ताकत ने मिलकर दबा दी। उनका प्रशा के बड़े भू - स्वामियों ने भी समर्थन किया।
- तत्पश्चात प्रशा के राष्ट्रीय एकीकरण के लिए प्रशा के प्रमुख मंत्री बिस्मार्क ने आंदोलन का नेतृत्व किया।
- आटो वॉन बिस्मार्क ने इस आंदोलन में प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली।
- 7 वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से 3 युद्धों में प्रशा की जीत हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।
- जनवरी 1871 में वायसराय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
- जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए और कानून के समक्ष सबकी बराबरी के नियम लागू किए।
- संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया।
- प्रशासनिक विभाजनो को सरल बनाया, सामंती व्यवस्था को खत्म किया और किसानों को भू दासत्व और जागीरदार शुल्क से मुक्ति दिलाई।
- यातायात और संचार व्यवस्था में सुधार किया गया।
- शहरों में कारीगरों के श्रेणी संघो के विभिन्न नियंत्रणों को समाप्त कर दिया गया।
- किसानों, मजदूरों, कारीगरों और उद्योगपतियों को स्वतंत्रता प्रदान की गई।
- मानक नापतौल के एक समान पैमाने चलाई गई और एक राष्ट्रीय मुद्रा चलाई।
चर्चा करें
- उदारवादियों ने राष्ट्रीय विचार के निर्माण की मांगों को आगे बढ़ाया। यह राष्ट्र राज्य संविधान प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की आजादी जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित था।
- निरंकुश शासन और पादरी वर्ग के विशेष अधिकारों की समाप्ति।
- सभी नागरिकों को सामाजिक समानता प्रदान करना।
- महिलाओं को अवयस्क का दर्जा देते हुए उन्हें पिता और पतियों के अधीन कर दिया था ।19वीं सदी में यूरोप में उन्हें मताधिकार प्राप्त नहीं था, जिनके पास निजी संपत्ति नहीं थी।
- उदारवादी बाजारों के मुक्ति के पक्षधर थे।
- उदारवादी चीजों तथा पूंजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणो को खत्म करने के पक्ष में थे।
2. यूरोप में राष्ट्रवाद को फैलाने में नेपोलियन बोनापार्ट किस तरह सहायक हुआ?
3. किन्हीं दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए।
5. बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा ?
- बाल्कन प्रदेशों में अनेक जातीय समूह निवास करते थे।
- बाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के अधीन था जो अपने पतन के कगार पर था।
- स्लाव बाल्कन के जातीय समूह उदारवादी और राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। अतः ये सभी जातीय समूह राष्ट्र- राज्य की मांग करने लगे।
- बाल्कन राज्य एक दूसरे से भारी ईर्ष्या करते थे और हर एक राज्य अपने लिए ज्यादा से ज्यादा इलाका हथियाना चाहता था।
- रूस, जर्मनी, इंग्लैंड ऑस्ट्रो- हंगरी की हर ताकत बाल्कन पर अन्य शक्तियों की पकड़ को कमजोर कर के क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहती थी।
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